Gujarat IAF Fighter Jet; Air Force Pilot Siddharth Yadav|Suvarda Village – Jamnagar | हरियाणा के शहीद फ्लाइट लेफ्टिनेंट को गुजरात में सैल्यूट: ​​​​​​​जिस गांव को बचाया, वहां नमन किया; फोटो नहीं थी तो एयरफोर्स स्टेशन पहुंच गए – Rewari News

गुजरात के सुवरदा गांव में शहीद फ्लाइट लेफ्टिनेंट को श्रद्धांजलि देते ग्रामीण।

हरियाणा के रेवाड़ी के शहीद फ्लाइट लेफ्टिनेंट सिद्धार्थ यादव की शहादत पर गुजरात में जामनगर का गांव भी भावुक हो गया। पूरे गांव ने श्रद्धांजलि सभा रखकर शहीद काे श्रद्धांजलि दी और जान बचाने के लिए शुक्रिया कहा। 2 अप्रैल की रात सिद्धार्थ ने जगुआर क्रैश में

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गांववालों के पास सिद्धार्थ की फोटो नहीं थी तो वह जामनगर के एयरफोर्स स्टेशन गए और वहां से फोटो ली। श्रद्धांजलि सभा में बुजुर्गों से लेकर बच्चे और महिलाएं भी शामिल थीं। इस दौरान तिरंगे के साथ ग्रामीणों ने शहीद को नमन किया।

2 अप्रैल की रात जगुआर क्रैश में लेफ्टिनेंट सिद्धार्थ शहीद हो गए थे।

2 अप्रैल की रात जगुआर क्रैश में लेफ्टिनेंट सिद्धार्थ शहीद हो गए थे।

सिद्धार्थ ने गांव, को-पायलट बचाया, जैट क्रैश कैसे हुआ, 3 पॉइंट्स में जानिए…

1. पहले को-पायलट को इजेक्ट कराया लेफ्टिनेंट सिद्धार्थ यादव 2 अप्रैल की रात फाइटर जैट जगुआर को लेकर निकले थे। उनके साथ को-पायलट के तौर पर मनोज कुमार भी थे। उड़ान के दौरान जगुआर में तकनीकी खराबी आ गई। इसके बाद इसे सही से लैंड करने की तमाम कोशिशें की गईं, लेकिन एक समय ऐसा आया जब पता चल गया कि विमान क्रैश होना निश्चित है। जामनगर एयर स्टेशन से करीब 12 किलोमीटर दूर सिद्धार्थ ने को-पायलट को इजेक्ट करा दिया।

2. गांव बचाने के लिए अपनी जान की कुर्बानी दी इसके बाद सिद्धार्थ के पास मौका था कि वह फाइटर जेट जगुआर से सुरक्षित ढंग से इजेक्ट हो सकते थे। मगर, उन्होंने देखा कि नीचे जामनगर का गांव सुवरदा है। अगर जेट को छोड़कर वह बाहर निकल गए तो यह गांव पर गिर जाएगा।

इसकी वजह यह थी कि जगुआर फाइटर प्लेन में 4,200 लीटर फ्यूल आता है। इसके अलावा 1,200 लीटर के ड्रॉप टैंक्स भी लगाए जा सकते हैं। अगर हादसा गांव की घनी आबादी में होता तो प्लेन में मौजूद फ्यूल भारी तबाही मचा सकता था। इस वजह से उन्होंने अपनी जान की चिंता छोड़ गांव को बचाने की ठान ली।

3. पक्षियों का झुंड टकराने से क्रैश हो गया जेट सिद्धार्थ ने विमान के क्रैश होने के पूरे खतरे के बावजूद उसे गांव के ऊपर से निकाल लिया। इसके बाद वह उसे जंगल के ऊपर छोड़कर खुद इजेक्ट होना चाहते थे, ताकि किसी का नुकसान न हो। वह जंगल तक पहुंच भी गए थे, लेकिन अचानक उनके जेट के विंग्स में पक्षियों का झुंड टकराकर फंस गया। इस वजह से जेट वहीं क्रैश हो गया और सिद्धार्थ यादव शहीद हो गए।

जामनगर के सुवरदा गांव में जुटी लोगों की भीड़, जिन्होंने शहीद को श्रद्धांजलि दी।

जामनगर के सुवरदा गांव में जुटी लोगों की भीड़, जिन्होंने शहीद को श्रद्धांजलि दी।

शहीद सिद्धार्थ यादव से जुड़ी अहम बातें

  • सेना में परिवार की चौथी पीढ़ी: सिद्धार्थ यादव परिवार की चौथी पीढ़ी से थे, जो सेना में थे। उनके पड़दादा डालूराम ने ब्रिटिश शासन के अधीन आने वाली बंगाल इंजीनियर्स में काम किया था। दादा रघुवीर पैरामिलिट्री फोर्स में थे। इसके बाद इनके पिता सुशील यादव भी एयरफोर्स में रहे। वर्तमान में वह LIC में कार्यरत हैं।
  • पहले अटेंप्ट में ही NDA पास की: पिता सुशील यादव ने बताया था कि सिद्धार्थ ने साल 2016 में पहली ही बार में NDA परीक्षा पास की थी। तब 12वीं कक्षा का परिणाम तो आ चुका था, लेकिन उनकी मार्कशीट नहीं आई थी। उसी समय उसकी जॉइनिंग आ गई थी। पिता एयरफोर्स में थे और सिद्धार्थ भी 8वीं क्लास तक एयरफोर्स स्कूल में पढ़े थे। हर रोज फ्लाइट उड़ते देखते थे तो उनके मन में भी था कि एक दिन जहाज उड़ाऊंगा। इसी वजह से वह फाइटर पायलट बने।
  • 10 दिन पहले सगाई हुई थी: सिद्धार्थ 20 मार्च को छुट्‌टी पर घर आए थे। 23 मार्च को उनकी रेवाड़ी की ही सानिया से सगाई हुई। इसके बाद 31 मार्च को ड्यूटी पर लौट गए। उसके बाद 2 अप्रैल को उनकी शहादत की खबर आ गई। परिवार ने शादी के लिए 2 नवंबर की तारीख तय की थी।
सिद्धार्थ 21 मार्च को छुट्‌टी आए थे, 23 मार्च को उन्होंने सानिया से सगाई की, इस दौरान दोनों बेहद खुश नजर आ रहे थे। 31 मार्च को सिद्धार्थ वापस ड्यूटी पर जामनगर लौटे थे।

सिद्धार्थ 21 मार्च को छुट्‌टी आए थे, 23 मार्च को उन्होंने सानिया से सगाई की, इस दौरान दोनों बेहद खुश नजर आ रहे थे। 31 मार्च को सिद्धार्थ वापस ड्यूटी पर जामनगर लौटे थे।

  • सिद्धार्थ ने होटल-मेहंदी अरेंजमेंट कर लिए थे: शादी को लेकर सिद्धार्थ खुद होटल बुक करके गए थे। मेहंदी व दूसरे फंक्शन के लिए सिद्धार्थ ने खुद ही सभी अरेंजमेंट तय किए। वह घर कहकर गए थे कि नवंबर में शादी पर ही छुट्‌टी आऊंगा तो फिर टाइम नहीं मिलेगा, इसलिए अभी सब करके जा रहा हूं।
  • जिस घर में डोली आनी थी, वहां पार्थिव देह आई: सिद्धार्थ का परिवार मूल रूप से रेवाड़ी के भालखी माजरा गांव का रहने वाला है। मगर, उनकी शादी को देखते हुए परिवार ने रेवाड़ी के सेक्टर-18 में नया घर खरीदा था। इसी घर से बारात जानी थी और दुल्हन की डोली आनी थी। मगर, 2 अप्रैल को शहादत के 2 दिन बाद 4 अप्रैल को जामनगर से यहां उनकी पार्थिव देह ही लाई गई। इसी दिन पैतृक गांव में उनका राजकीय सम्मान से अंतिम संस्कार किया गया।
अंतिम संस्कार के मौके पर शहीद की पार्थिव देह पर विलाप करतीं बहन खुशी (बाएं), मंगेतर सानिया (बीच में) और मां सुशीला यादव (दाएं)।

अंतिम संस्कार के मौके पर शहीद की पार्थिव देह पर विलाप करतीं बहन खुशी (बाएं), मंगेतर सानिया (बीच में) और मां सुशीला यादव (दाएं)।

अंतिम विदाई में पहुंची मंगेतर, एक बार शक्ल दिखाने को कहती रहीं सिद्धार्थ की मंगेतर सानिया भी अंतिम विदाई देने पहुंची थीं। वह घर में पार्थिव देह आने से लेकर पैतृक गांव में अंतिम संस्कार तक सिद्धार्थ की पार्थिव देह वाले बॉक्स के साथ रहीं। रेवाड़ी के घर में जब पार्थिव देह पहुंची तो सानिया बॉक्स खटखटाकर पूछती रहीं- ‘बेबी, तू आया नहीं मेरे लिए, तू तो बोलकर गया था, मैं आऊंगा तुझे लेने।’ इस दौरान वह बॉक्स को खटखटाती हुई भी नजर आईं।

इसके बाद जब पार्थिव देह श्मशान में ले जाई गई तो वहां सानिया पार्थिव देह पर हाथ रखे खड़ी रहीं। जब शहीद का अंतिम संस्कार किया जाने लगा तो वह रोते हुए कहती रहीं- प्लीज, एक बार उसकी शक्ल दिखा दो। हालांकि, एयरफोर्स के अफसरों ने कहा कि हमारी मजबूरी है। शक्ल नहीं दिखा सकते।

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