अयोध्या का दिगंबर जैन मंदिर जहां अनुष्ठान चल रहा है।
विश्व शांति की कामना से रायगंज स्थित दिगंबर जैन मंदिर में 60 दिवसीय अनुष्ठान हो रहा है। इसके दूसरे दिन त्रिलोक महामंडल विधान का पूजन किया गया। इसमें तीनों लोकों में स्थित समस्त देवताओं के पूजन का भाव किया जाता है।
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इस अवसर पर मंदिर के पीठाधीश रवींद्र कीर्ति स्वामी ने कहा कि तीर्थंकरों की चेतना के समस्त केंद्रों और उनकी ऊर्जा से प्रवाहित मंदिरों पर कल्याणकारी रूप में महसूस किया जा सकता है। हम अपने जीवन में बहुत प्रयास कर 100 मंदिरों तक जा सकते हैं।
स्थूल शरीर से कतई नहीं जा सकते
उन्होंने कहा कि तीनों लोकों में जो तीर्थंकरों की चेतना के दिव्य-दैवी केंद्र हैं, वहां तक तो स्थूल शरीर से कतई नहीं जा सकते। ऐसे में महामंडल विधान से हम भावनात्मक रूप से सभी देवों के लोकों एवं मंदिरों से जुड़ कर दिव्य आत्माओं को कहीं अधिक ज्यादा समर्पण से नमन करने में सक्षम होते हैं। यह विधान विश्व शांति के प्रति वैश्विक प्रणति की भावना का भी मजबूत करने वाला है।
इस अवसर पर जैन समाज की शीर्ष साध्वी गणिनी प्रमुख ज्ञानमती माता ने ‘ऊं ह्रीं विश्वशांतिकराय श्री ऋषभदेव जिनेन्द्राय नम:’ के रूप में सारे विश्व को विश्व शांति का मंत्र प्रदान किया। आह्वान किया कि प्रतिदिन हर व्यक्ति 108 बार इस मंत्र का जप करे।
पंथ-परंपरा तक सीमित न होकर समग्र मानवता का मार्गदर्शन करती हैं
उन्होंने बताया कि हम भगवान ऋषभदेव के मार्ग का पूरी तरह: अनुसरण करने की भावना और सत्य को अधिकाधिक उपलब्ध होने की चेष्टा से जैन धर्मानुयायी हैं।किंतु सत्य यह है कि तीर्थंकर और अन्यान्य दिव्य विभूतियां किसी पंथ-परंपरा तक सीमित न होकर समग्र मानवता का मार्गदर्शन करती हैं।
उन्होंने कहा कि हम सच्चे हृदय और शास्त्रीय विधान पूर्वक उनसे विश्व शांति की कामना करेंगे, तो यह कामना अवश्य फलीभूत होगी। एक अन्य शीर्ष साध्वी प्रज्ञा श्रमणी चंदनामती माता ने कहा कि जगत में संकल्प ही साकार होते हैं और संकल्पों के ही अनुसार जगत की दशा-दिशा प्रशस्त होती है।
अयोध्या जैसी पावन भूमि से विश्व शांति जैसा पावन संकल्प
उन्होंने कहा कि यदि हम संकल्पित हो सकें, तो यह असंभव नहीं कि विश्व शांति निकट भविष्य में फलीभूत हो और अयोध्या जैसी पावन भूमि से विश्व शांति जैसा पावन संकल्प यहां की श्रेष्ठतम संस्कृति के अनुरूप है। इस पावन भूमि पर ऋषभदेव से लेकर श्रीराम ने जन्म लिया। जैन शास्त्रों के अनुसार यह भूमि शाश्वत है, यहां पर अनंतानंत जैन तीर्थंकरों ने जन्म लिया।
महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश सहित अनेक प्रांतों के श्रद्धालु शामिल
जैन मंदिर के प्रवक्ता प्रतिष्ठा के आचार्य विजय कुमार ने बताया कि त्रिलोक महामंडल विधान में महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हैदाराबाद, मुंबई, दिल्ली आदि स्थानों के दो सौ से अधिक श्रद्धालु जैन मंदिर में एकत्र हुए हैं। यह सभी पारंपरिक रूप से स्वयं के कल्याण और मोक्ष प्राप्ति की भावना से युक्त हैं, किंतु माता ज्ञानमती माता एवं पीठाधीश रवींद्रकीर्ति स्वामी के संकल्प के अनुरूप यह श्रद्धालु विश्व शांति के अनुष्ठान में शामिल होकर कहीं अधिक अभिभूत हो रहे हैं।