दौसा, टोंक, सवाई माधोपुर, अलवर, भरतपुर सहित प्रदेश के 15 जिलों की जलवायु मधुमक्खी पालन के लिए उपयुक्त है। यहां के किसान और ग्रामीण मधुमक्खी पालन से अच्छी आमदनी पा सकेंगे। इसकी संभावना तलाशने के लिए श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक का
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अब किसानों के मधुमक्खी पालन के लिए एक एप भी बनाया जाएगा, जिस पर किसान मधुमक्खी पालन को लेकर अपनी तमाम शंकाएं दूर कर सकेंगे। उनकी समस्याओं का समाधान भी किया जाएगा। इन जिलों में रेपसीड और सरसों का उत्पादन अधिक होता है। ऐसे में यहां ज्यादा संभावना है। सरसों में मधुमक्खियां 20 से 25% तक उपज में इजाफा करती हैं।
मधुमक्खी पालन केवल शहद उत्पादन तक सीमित नहीं है। इसका उपयोग जैविक खेती, औषधीय उत्पादों और सौंदर्य प्रसाधनों में भी बढ़ रहा है। विवि के कुलपति डॉ. बलराजसिंह ने बताया कि वर्तमान में देश में लगभग 2.5 लाख मधुमक्खी कॉलोनियां हैं, जबकि देश की क्षमता 200 लाख कॉलोनियों तक की है। ऐसे में यहां मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं।
मधुमक्खियां परागण की प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाती हैं, जिससे फसलों का उत्पादन बढ़ता है। सरसों, राई और अन्य फूलदार फसलों के लिए मधुमक्खियां परागण में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। मधुमक्खी के डंक का भी औषधीय गुण है। एपीथेरेपी नामक एक पद्धति में मधुमक्खी के डंक का उपयोग दर्द, आर्थराइटिस, सूजन, और अन्य समस्याओं के इलाज में किया जाता है।
एप से दी जाएगी तकनीकी और वैज्ञानिक सलाह
मधुमक्खी पालकों के लिए जल्द ही एक एडवाइजरी एप लॉन्च किया जाएगा। इस एप के माध्यम से मधुमक्खी पालन से संबंधित सभी जानकारी मिलेगी। एप में मधुमक्खी पालन की उन्नत तकनीकों व बीमारियों के नियंत्रण की जानकारी मिलेगी। साथ ही मधुमक्खी पालन से आमदनी बढ़ाने के लिए बाजार की भी उपलब्धता रहेगी। मधुमक्खी पालन को अधिक लाभदायक बनाने में नवीनतम तकनीकों से समय समय पर अवगत कराया जाएगा।
13 से 40 डिग्री तक तापमान मधुमक्खियों के लिए मुफीद
मधुमक्खियों को पालने के लिए जलवायु का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। ज्यादा गर्मी उन्हें प्रभावित कर देती है। 13 डिग्री सेल्सियस से कम और 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तापमान होने पर मधुमक्खियों की कार्यक्षमता कम हो जाती है। इस दौरान वे उड़ने में सक्षम नहीं होती। इसलिए राजस्थान का अर्ध-शुष्क क्षेत्र मधुमक्खी पालन के लिए उपयुक्त है। यहां सर्दियों और गर्मियों के मौसम के अधिकांश दिनों में तापमान अनुकूल रहता है।
भारत में प्रमुख प्रजातियां एपिस डोर्सटा, एपिस सेरेना इंडिका, एपिस फ्लोरिया और एपिस मेलिफेरा (यूरोपियन प्रजाति) जो अतिरिक्त मात्रा में शहद दे देती है। इनमें से एपिस सेरेना, एपिस मेलिफेरा प्रजाति राजस्थान के साथ साथ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और दक्षिण भारत के राज्यों में भी है।