This is the precious treasure of Indore | ये है इंदौर का कीमती खजाना: सिर्फ दिवाली पूजन पर ही निकाला जाता है, सोने के तार की लक्ष्मी, गुप्तकाल की स्वर्ण मुद्रा, 250 साल पुराना सिक्का भी दिवाली की धरोहर – Indore News

दीपावली पूजन में परिवार का वैभव और परंपराएं दोनों झलकती हैं। हर घर की पूजन की अपनी परंपराएं हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही हैं। इनमें कुछ दुर्लभ विरासत भी शामिल हैं, जो साल में सिर्फ एक बार सिर्फ दिवाली पूजन के लिए निकाली जाती हैं।

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इनमें सोने के तार से बनी महालक्ष्मी, गुप्त काल की सोने की मुद्रा, 250 वर्ष पुराना सिक्का और एक सदी पुरानी कलम-दवात शामिल है। आइये जानते हैं शहर के कुछ परिवारों में दिवाली पूजन का खजाना कितना अनूठा है, सुरक्षा कारणों से संबंधित परिवार अपना नाम नहीं देना चाहते हैं।

गुप्तकाल के सिक्के पर उत्कीर्ण है माता महालक्ष्मी का स्वरूप

इंदौर के एक प्रसिद्ध उद्योगपति के यहां सोने के तार से बनी महालक्ष्मीजी की एम्बोस्ड फोटो है। इस गोल्ड एम्बॉस्ड फोटो का दीपावली पर खास पूजन किया जाता है। यह उनके यहां की वर्षों पुरानी परंपरा है। इसके अलावा एक व्यापारी के यहां गुप्तकाल की स्वर्णमुद्रा है। इसमें एक ओर कमलवासिनी मां महालक्ष्मी है। यह मुद्रा दुर्लभ है। दीपावली पर इसका खासतौर पर पूजन करते है। इसी तरह गोयलनगर निवासी परिवार में 75 साल पुराना 100 ग्राम का महालक्ष्मी का सिक्का है। दीपावली के लिए पूर्वजों ने यह सिक्का बनवाया था।

पीतल का टॉवर… 100 साल पुरानी कलम-दवात

बदलते समय के साथ कलम-दवात का उपयोग वैसे तो अब बहुत कम हो गया है। हालांकि उषानगर निवासी व्यवसायी के यहां 100 साल पुराना पीतल का टॉवर और कलम-दवात है। दीपावली पर हर साल इनका पूजन कर इसी से मुहूर्त में बहीखातों पर लिखा जाता है। वे कहते हैं, यह कलम-दवात हमारे लिए सौभाग्यशाली है। यही हमारा असल धन भी है।

100 साल से ज्यादा पुराना चांदी का सिक्का

इंदौर के एक व्यापारी के यहां 100 साल से ज्यादा पुराना चांदी का सिक्का है। वे कहते हैं, धनतेरस पर शगुन के लिए हर साल चांदी-सोना खरीदने की परंपरा है। ऐसे में हर साल चांदी का सिक्का खरीदते हैं और उसका पूजन करते हैं। एक साल से लेकर 100 साल तक के सिक्कों का पूजन किया जाता है।

125 साल पुरानी समई, ऊंचाई 2 से 3 फीट तक

इंदौर के सबसे पुराने एमटी क्लॉथ मार्केट और सराफा बाजार में व्यापारी महालक्ष्मीजी की अगवानी के लिए समई प्रज्ज्वलित करते हैं। दोनों बाजार के व्यावसायियों की यह खास परंपरा है। व्यापारियों ने कहा कि यह समई 75 से लेकर 125 साल पुरानी है। इनकी ऊंचाई भी एक से तीन फीट तक है। ​​​​​​​

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