मध्यप्रदेश बीजेपी का नया मुखिया कौन होगा? ये दिसंबर में तय हो जाएगा। प्रदेश की दो विधानसभा सीटें बुधनी और विजयपुर में उपचुनाव हो रहा है इसके नतीजे 23 नवंबर को आएंगे। इसके बाद संगठन की चुनाव प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। हर बार की तरह ही पार्टी की कोशिश अध
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सूत्रों के मुताबिक नए अध्यक्ष का चुनाव जातीय, क्षेत्रीय और वोट बैंक को साधने के तीन क्राइटेरिया को ध्यान में रखकर किया जाएगा। वहीं सूत्र ये भी बताते हैं कि नया अध्यक्ष आरएसएस का करीबी होगा। केंद्रीय संगठन कोई चौंकाने वाला नाम सामने लाए इस बात की भी संभावना है। जानिए पार्टी के इन क्राइटेरिया में कौन से नेता अध्यक्ष पद के लिए फिट बैठ रहे हैं। पढ़िए रिपोर्ट
जातीय समीकरण के फॉर्मूले में फिट ये दो नेता
बीजेपी यदि जातीय समीकरण का फॉर्मूला अप्लाय करती है तो प्रदेश अध्यक्ष का चेहरा सामान्य वर्ग से हो सकता है। केंद्रीय कैबिनेट में एससी-एसटी चेहरे के तौर पर सावित्री ठाकुर, दुर्गादास उइके और वीरेंद्र खटीक को शामिल कर चुकी है। प्रदेश में मुख्यमंत्री के तौर पर ओबीसी चेहरा है। विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी क्षत्रिय समुदाय से आने वाले नरेंद्र सिंह तोमर को सौंपी गई है।
ऐसे में पार्टी सूत्रों का कहना है कि ब्राम्हण नेता को फिर से मौका मिल सकता है। यदि ऐसा होता है तो दो नेता इस क्राइटेरिया में फिट बैठते हैं। इनमें से एक हैं वरिष्ठ विधायक रामेश्वर शर्मा और दूसरे हैं पूर्व मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा।
डॉ. नरोत्तम मिश्रा, पूर्व मंत्री: अगड़ों की सियासत में ब्राह्मण चेहरा
मिश्रा छह बार से विधायक हैं। दतिया विधानसभा क्षेत्र से चुन कर आते हैं। वे मध्यप्रदेश की सियासत में बीजेपी का ब्राह्मण चेहरा माने जाते हैं। शिवराज सरकार में नंबर दो की हैसियत रखते थे। सियासी गलियारों में उन्हें संकटमोचक के तौर पर देखा जाता है।
एक्सपर्ट के मुताबिक मिश्रा भी बीजेपी के जातीय फॉर्मूले में फिट बैठते हैं। वे ब्राह्मण वर्ग से आते हैं। दूसरी तरफ न्यू जॉइनिंग टोली के संयोजक के तौर पर उन्होंने अपनी संगठन क्षमता को साबित किया है। नरोत्तम मिश्रा खुद दावा करते हैं कि 1 जनवरी से 31 मई तक बीजेपी की न्यू जॉइनिंग टोली की वजह से कांग्रेस और दूसरी पार्टियों से करीब 4 लाख कार्यकर्ताओं ने बीजेपी जॉइन की है।
रामेश्वर शर्मा, विधायक : आक्रामक हिंदूवादी छवि
रामेश्वर शर्मा भोपाल की हुजूर विधानसभा सीट से 3 बार के विधायक हैं। इस बार वे मंत्री पद के दावेदार थे, मगर उन्हें मौका नहीं मिला। साल 2020 में जब कमलनाथ सरकार गिरी और फिर बीजेपी की सरकार बनी तो वे प्रोटेम स्पीकर बनाए गए थे।
रामेश्वर के नाम बतौर प्रोटेम स्पीकर सबसे लंबा कार्यकाल( जुलाई 2020 से फरवरी 2021) दर्ज है। एक्सपर्ट के मुताबिक जातीय समीकरण में रामेश्वर शर्मा फिट बैठते हैं। उनकी आक्रामक हिंदूवादी छवि भी उनके पक्ष में जाती नजर आती है।
क्षेत्रीय समीकरण में विंध्य को मिल सकती है तवज्जो
यदि बीजेपी क्षेत्रीय समीकरण को तवज्जो देगी तो प्रदेश अध्यक्ष विंध्य क्षेत्र से किसी को बनाया जा सकता है। केंद्रीय कैबिनेट में इस क्षेत्र से किसी सांसद को मौका नहीं मिला है। ऐसे में उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला इस पद के प्रबल दावेदार हैं।
जानकार मानते हैं कि यदि राजेंद्र शुक्ला को अध्यक्ष बनाया जाता है तो बीजेपी विंध्य के साथ-साथ महाकौशल को भी साध लेगी। शुक्ला के नाम पर शिवराज सहमत हो जाएंगे और अन्य नेताओं की तरफ से उनका विरोध नहीं होगा।
पिछले चुनाव के आंकड़े देखें तो प्रदेश के छह अंचलों में विंध्य एकमात्र ऐसा क्षेत्र रहा जहां बीजेपी ने 2018 तुलना में 2023 के चुनावों में कहीं अधिक बेहतर प्रदर्शन किया। यहां की 30 सीटों में से उसे 24 पर जीत मिली है।
आदिवासी चेहरे पर दांव खेला तो 2 दावेदार
एक्सपर्ट कहते हैं कि वोट बैंक को साधने की दृष्टि से किसी आदिवासी चेहरे को भी मौका मिल सकता है। बीजेपी में लंबे समय से किसी सांसद को ही अध्यक्ष बनने का मौका मिल रहा है। ऐसे में बीजेपी इस फॉर्मूले को लागू करती है तो पूर्व केंद्रीय मंत्री एंव मंडला से सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते और राज्यसभा सांसद डॉ. सुमेर सिंह सोलंकी भी प्रबल दावेदार हैं।
फग्गन सिंह कुलस्ते, सांसद: प्रदेश में भाजपा का आदिवासी चेहरा
कुलस्ते बीजेपी के वरिष्ठ नेता हैं। आदिवासी वर्ग से आते हैं। उन्हें इस बार कैबिनेट में भी शामिल नहीं किया गया है। वे बीजेपी के एसटी मोर्चे की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। ऐसे में उन्हें संगठन में काम करने का भी अनुभव है। हालांकि, बीजेपी पहले ही आदिवासियों को प्रतिनिधित्व दे चुकी है, लेकिन सांसद को पद देने के फॉर्मूले में वे फिट बैठते हैं।
महाकौशल अंचल में 38 सीटें हैं। यहां से विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 21 सीटें जीती हैं। जबकि 2018 में कांग्रेस ने 23 और बीजेपी ने 14 और 1 निर्दलीय के खाते में गई थी।
डॉ. सुमेर सिंह सोलंकी, सांसद राज्यसभा : संघ के करीबी
राज्यसभा सांसद डॉ. सुमेर सिंह सोलंकी संघ के करीबी है। साल 2020 में पार्टी ने राज्यसभा सांसद के लिए उनके नाम का चयन किया था। सांसद से पहले सोलंकी बड़वानी के शहीद भीमा नायक शासकीय महाविद्यालय में प्रोफेसर थे।
वे खरगोन-बड़वानी से बीजेपी के पूर्व सांसद माकन सिंह सोलंकी के भतीजे हैं। सोलंकी समाज सेवा के कार्य से भी जुड़े हैं। प्रोफेसर रहते हुए वे पांच सौ गांवों में स्वच्छता अभियान चला चुके हैं। वे लंबे समय से वनवासी कल्याण परिषद के माध्यम से आदिवासी लोगों के उत्थान के लिए काम कर रहे हैं।
एससी वर्ग को तवज्जो तो लाल सिंह आर्य भी दावेदार
राजनीतिक विश्लेषक एन के सिंह का कहना है कि बीजेपी यदि जातिगत समीकरण के आधार पर प्रदेश अध्यक्ष का चयन करती है तो ज्यादा संभावना है कि अनुसूचित जाति वर्ग के किसी नेता को मौका मिले। इसकी वजह यह है कि पिछले लोकसभा चुनाव में दलित वोटर का बीजेपी की तरफ झुकाव था।
इस क्राइटेरिया में बीजेपी के अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालसिंह आर्य फिट बैठते हैं।इस बार वे गोहद सीट से विधानसभा का चुनाव लड़े थे, मगर बेहद कम वोट के अंतर से चुनाव हार गए। भाजपा सूत्रों का कहना है कि लाल सिंह आर्य पिछले कुछ महीनो से संगठन में ज्यादा सक्रिय दिखाई दे रहे हैंl हर बैठक में उनकी उपस्थिति से यह संकेत मिलते हैं कि पार्टी उन्हें प्रदेश में कोई बड़ा पद दे सकती हैl
अब जानिए वीडी शर्मा के लिए क्या संभावनाएं हैं…
पहली: राष्ट्रीय संगठन में बड़ी जिम्मेदारी
सूत्रों का कहना है कि वीडी शर्मा के नेतृत्व में बीजेपी ने न केवल विधानसभा चुनाव में 163 सीटें जीतीं, बल्कि लोकसभा चुनाव में भी 29 सीटें जीतने में कामयाब रही। ऐसे में उन्हें केंद्रीय संगठन में बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है। उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष या फिर राष्ट्रीय महासचिव बनाया जा सकता है।
दूसरी : वीडी को फिर से प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाए
इस बात की भी संभावना है कि उन्हें इस पद पर रिपिट किया जाए। हालांकि, बीजेपी में ऐसा पहले हुआ नहीं है कि लगातार दो टर्म किसी को अध्यक्ष बनाया गया हो। सुंदरलाल पटवा, कैलाश जोशी और नरेंद्र सिंह ये तीन ऐसे नेता रहे हैं, जिन्होंने दो बार प्रदेश अध्यक्ष की कमान संभाली है, मगर उनके दो टर्म के बीच कुछ सालों का अंतर रहा है।
सोर्स- https://mp.bjp.org/
23 नवंबर के बाद ही चुनाव के आसार
ऐसा माना जा रहा है कि बीजेपी के संगठन चुनाव के काम में 23 नवंबर को झारखंड और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद तेजी आएगी। बीजेपी के कई सीनियर लीडर दोनों राज्यों के चुनाव में व्यस्त रहेंगे। संभावना है कि सभी बूथ समितियों का गठन करा लिया जाए। उसके बाद मंडल और जिलों और प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव की शुरुआत हो।
संगठन चुनाव के लिए बीजेपी ने विवेक शेजवलकर को प्रदेश चुनाव अधिकारी नियुक्त किया है। वहीं, जीतू जिराती, अर्चना चिटनीस, रजनीश अग्रवाल और डॉ प्रभुलाल जाटवा को सह चुनाव अधिकारी नियुक्त किया है। यह कमेटी राज्य की बूथों पर बूथ समितियों का गठन करेगी। इसके बाद मंडल अध्यक्षों का चुनाव होगा फिर जिला अध्यक्ष और उसके बाद प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव कराया जाएगा।
बीजेपी में सर्वसम्मति से चुनाव, मगर कई मौके पर आई चुनाव की नौबत
पार्टी के वरिष्ठ नेता रघुनंदन शर्मा कहते हैं कि बीजेपी एक अनुशासित पार्टी है यहां सर्वसम्मति से ही अध्यक्ष को चुना जाता है। संगठन जिसके नाम का प्रस्ताव देता है उसे सभी को मानना पड़ता है। मगर, इससे पहले तीन बार ऐसे मौके आ चुके हैं जब संगठन के ऑफिशियल कैंडिडेट के सामने चुनाव की नौबत आई थी, हालांकि जो लोग चुनाव लड़े उन्हें हार का ही सामना करना पड़ा।
- रघुनंदन बताते हैं कि लखीराम अग्रवाल 1990 से 1994 तक पार्टी के अध्यक्ष रहे उनका दो बार चुनाव हुआ था।
- 1990 में जब संगठन की तरफ से उनका नाम प्रस्तावित किया गया तब वीरेंद्र सखलेचा ने उनके सामने नामांकन दाखिल कर दिया था, लेकिन वो हार गए।
- इसी तरह दूसरी बार जब लखीराम अग्रवाल का नाम अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित किया तो कैलाश जोशी ने इसका विरोध किया था।
- साल 2000 में विक्रम वर्मा के चुनाव के वक्त भी शिवराज सिंह चौहान जो उस समय युवा मोर्चा के कार्यकर्ता थे, उन्होंने नामांकन दाखिल कर दिया था।
- शिवराज ने नाम वापस नहीं लिया तो मतदान की नौबत आई। वर्मा को दो सौ से ज्यादा वोट मिले और चौहान सौ से भी कम वोट हासिल कर पाए थे।
अब जानिए कैसे होता है बीजेपी में प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव
बीजेपी के प्रदेश महामंत्री रजनीश अग्रवाल बताते हैं कि पार्टी के संविधान के मुताबिक चुनाव की एक पूरी प्रक्रिया होती है। पहले बूथ लेवल पर चुनाव होते हैं। उसके बाद मंडल और जिला स्तर पर प्रतिनिधियों को चुना जाता है। जिला स्तर के बाद प्रदेश परिषद् का गठन होता है।
इसमें जिला इकाई के प्रतिनिधि, विधायक, सांसद, राज्य से राष्ट्रीय परिषद् के सदस्य, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष, प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य, क्षेत्रीय समिति के पदाधिकारी, विधायक दल के नेता(मुख्यमंत्री), जिलों के जिला अध्यक्ष और महामंत्री, नगरपालिका, नगर निगम, ब्लाक समिति के अध्यक्ष, नॉमिनेटेड मेंबर, मोर्चा और प्रकोष्ठ के अध्यक्ष और संजोयक को सदस्य बनाया जाता है।
प्रदेश परिषद् में कितने सदस्य होंगे इसका एक पूरा क्राइटेरिया तय है। जो प्रदेश परिषद् बनती है उसके सदस्य ही प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा लेते हैं। हालांकि रजनीश भी कहते हैं कि जिसका नाम संगठन तय करता है उसे ही सभी लोग मिलकर चुनते हैं।
सोर्स- https://mp.bjp.org/