बहराइच में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान भड़की हिंसा में एक युवक मारा गया। प्रदेश सरकार ने कहा, दोषियों को बख्शेगी नहीं। उन्हें कड़ी से कड़ी सजा दी जाएगी। दूसरी तरफ, इस घटना में प्रदेश में दो पक्षों के बीच हिंसा के इतिहास को एक बार फिर दोहराया है।
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यूपी में क्या है दंगों का इतिहास? किसकी सरकार में कितने दंगे हुए? क्या है प्रदेश में दंगों की राजनीति? भास्कर एक्सप्लेनर में जानिए इन सवालों के जवाब…
बहराइच में सांप्रदायिक दंगे में वाहन फूंक दिए गए।
सबसे पहले जानिए क्या होते हैं सांप्रदायिक दंगे? इसका जवाब यूपी एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन एंड मैनेजमेंट की एक रिपोर्ट में मिलता है। इसके मुताबिक सांप्रदायिक दंगा तब कहा जाता है, जब दो पक्ष शांति और कानून व्यवस्था को बिगाड़ने की कोशिश करते हैं। भारतीय परिप्रेक्ष्य में अक्सर हिंदू और मुस्लिम के बीच होने वाली हिंसक घटनाओं को सांप्रदायिक दंगों में गिना जाता है। ये दंगे भले ही तुरंत के किसी केस को लेकर शुरू होते हैं, लेकिन इनमें कहीं न कहीं गहरे में छुपे हुए मतभेद और फासले होते हैं। सदियों से अक्सर ऐसा होता रहा है।
पूरे देश और राज्यवार दंगों के आंकड़ों की जानकारी देने वाली संस्था नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) दंगों को 5 कैटेगरी में बांटता है। इसमें सांप्रदायिक, राजनीतिक, कृषि, छात्रों के मुद्दे, इंडस्ट्रियल और वाटर डिस्प्यूट्स शामिल है।
सीएम योगी के पहले कार्यकाल में कितने सांप्रदायिक दंगे हुए? 2017-2021 के बीच सीएम योगी आदित्यनाथ का पहला कार्यकाल रहा। NCRB के आंकड़ों के मुताबिक इस बीच प्रदेश में सांप्रदायिक दंगों की बात करें तो 35 मामले दर्ज हुए। दूसरे कार्यकाल में बहराइच का पहला बड़ा सांप्रदायिक दंगा है, जिसमें एक मौत हुई।
बहराइच दंगे में राम गोपाल मिश्रा की मौत हो गई थी।
क्या पिछली सरकारों से कमी आई? NCRB के मुताबिक 2017 से 2021 आने तक प्रदेश में सांप्रदायिक दंगों में 97 फीसदी की कमी आई। इन 5 सालों में हुए 35 दंगों में भी 2018, 2019 और 2020 में दो धर्मों के बीच कोई सांप्रदायिक दंगा नहीं दर्ज हुए। इन आंकड़ों को लेकर ही सीएम योगी खुले मंचों से राज्य को दंगा मुक्त बता चुके हैं।
सपा और बसपा सरकार में क्या स्थिति थी? 2017 में बीजेपी के सत्ता में आने से पहले 2012 से 2017 तक समाजवादी पार्टी प्रदेश की सत्ता में थी। अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे। इस दौरान (2012 से 2016) के बीच NCRB के मुताबिक कुल 815 सांप्रदायिक दंगे हुए। इनमें 192 लोगों ने जान गंवाई। अखिलेश यादव से पहले राज्य में 5 साल के लिए मुख्यमंत्री पद मायावती के पास था। वह 2007 से 2012 तक सत्ता में रहीं। इस दौरान (2007 से 2011) के बीच सांप्रदायिक दंगों की 616 घटनाएं दर्ज हुईं। इसमें 121 लोगों की मौत हुई।
देश में सबसे ज्यादा सांप्रदायिक दंगे कब दर्ज हुए? NCRB के आंकड़ों के मुताबिक देश में पिछले 10 साल में देश में सांप्रदायिक दंगों के 6 हजार 800 मामले सामने आए हैं। सबसे ज्यादा 823 मामले 2013 में दर्ज हुए। दूसरे नंबर पर 822 मामले 2017 में दर्ज हुए। 2011 से 2017 के बीच देश में सांप्रदायिक दंगों की वजह से कुल 707 लोगों की जान गई। 2018 से NCRB ने सांप्रदायिक दंगों में मरने वालों का आंकड़ा देना बंद कर दिया।
आजादी के बाद राज्य में पहला बड़ा सांप्रदायिक दंगा कब हुआ? आजादी के बाद यूपी में पहला बड़ा सांप्रदायिक दंगा मुरादाबाद में मुस्लिम और अनुसूचित जाति के बीच हुए झगड़े को माना जाता है। मुरादाबाद में 13 अगस्त, 1980 को ईद के दिन यह दंगे हुए थे। ईदगाह के पास एक तरफ हिंदू (उसमें भी अनुसूचित जाति की आबादी वाला) इलाका था। दूसरी तरफ मुस्लिम बहुल इलाका था। ईद के दिन ईदगाह में जब करीब 50 हजार से भी अधिक मुस्लिम नमाज अदा करने के लिए इकट्ठा हुए, तब अफवाह फैल गई कि ईदगाह मैदान में एक आवारा पशु घूम रहा है।
नमाजियों ने पुलिस से उसे हटाने के लिए कहा। इस बीच बहस शुरू हो गई। देखते ही देखते पत्थरबाजी भी होने लगी। पुलिस ने PAC को फायर करने का ऑर्डर दे दिया। इसमें कुछ लोगों की मौत हो गई। इससे हिंसा और ज्यादा भड़क गई। यह आग मुरादाबाद से निकलकर अलीगढ़, बरेली और इलाहाबाद (प्रयागराज) तक फैल गई।
मुरादाबाद में गांवों में दो पक्षों की झड़प की ऐसी घटनाएं एक साल तक होती रहीं। सरकार के मुताबिक इसमें मरने वालों की संख्या 289 थी। इसके बाद यूपी 80 और 90 के दशक में कई बार सांप्रदायिक दंगों का अखाड़ा बन गया। 90 के दशक में बीजेपी के राम मंदिर आंदोलन के समय पूरा प्रदेश एक तरह से सांप्रदायिक दंगों के किनारे पर खड़ा रहा।
प्रदेश में दंगे राजनीतिक पार्टियों के लिए आरोप-प्रत्यारोप का मौका साल 2022 में बिजनौर में एक सभा को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री योगी ने दावा किया कि उनके पिछले कार्यकाल में राज्य में एक भी दंगा नहीं हुआ। कुछ ऐसा ही दावा समय-समय पर सपा और बसपा जैसी पार्टियां भी कर चुकी हैं। इसके इतर जैसे ही सांप्रदायिक दंगों की बात आती है, उसके भड़कने की वजहों को लेकर सभी पार्टियां अपने वोट बैंक को साधना शुरू कर देती हैं। किस समूह का उन्हें कितना वोट प्रतिशत मिलता है, उसके मुताबिक उनके बयान सामने आने लगते हैं। कई बार तो यह बयान हिंसा को काबू करने में मदद की बजाय बढ़ाने वाले होते हैं।
बहराइच के हिंसा को लेकर प्रदेश में विपक्षी पार्टियां सरकार पर सवाल उठाने लगी हैं। इसके समय को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। वजह है, यूपी में 10 सीटों पर होने वाला उपचुनाव। चुनाव आयोग ने इसके लिए तारीखों का भी ऐलान कर दिया है। ऐसे में, बहराइच के सांप्रदायिक दंगे का राजनीतिक रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है।
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