Kumbhkarna and ravana story in hindi, dussehra 2024, dussehra 2024 start date and end date, life management tips from ramayana | रावण की संगत में कुंभकर्ण की बुद्धि हो गई दूषित: बुरी लोगों की संगत में हमारे विचार भी हो जाते हैं दूषित, इसलिए अच्छे लोगों के साथ रहें

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28 मिनट पहले

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12 अक्टूबर को दशहरा है। त्रेतायुग में आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर श्रीराम ने रावण का वध किया था। रावण बुराइयों का प्रतीक है। रावण के स्वभाव से हम ये सीख सकते हैं कि जीवन में सुख-शांति पाने के लिए हमें कौन-कौन से काम नहीं करने चाहिए। हमें अपनी संगत के लिए बहुत सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि रावण जैसे गलत व्यक्ति की संगत में कुंभकर्ण की बुद्धि भी पलट गई थी।

ये है पूरा प्रसंग…

श्रीराम और रावण के युद्ध शुरू हो गया था। श्रीराम और लक्ष्मण ने रावण के कई महारथी मार दिए थे। जब रावण के पास कोई और महारथी नहीं बचा, तब रावण ने अपने भाई कुंभकर्ण को नींद से जगाया।

कुंभकर्ण को ब्रह्मा जी से 6 माह तक लगातार सोते रहने का वरदान मिला था। वह 6 माह में एक बार उठकर खाता-पीता और फिर सो जाता था। रावण ने कुंभकर्ण को अधूरी नींद में ही जगाया और श्रीराम से युद्ध के बारे में सब कुछ बताया।

कुंभकर्ण असुर था, लेकिन वह ज्ञानी भी था, वह जानता था कि श्रीराम सामान्य इंसान नहीं हैं, राम भगवान हैं। कुंभकर्ण ने रावण को समझाते हुए कहा कि भाई, आपने देवी सीता का हरण करके पूरी लंका को खतरे में डाल दिया है। श्रीराम स्वयं नारायण हैं। हमें सीता को सकुशल लौटा देना चाहिए, इसी में हम सब की भलाई है।

कुंभकर्ण ये बातें सुनकर रावण ने सोचा कि ये तो ज्ञान और धर्म की बातें कर रहा है। रावण ने तुरंत ही कुंभकर्ण के सामने मांस-मदिरा रखवा दी। मांस-मदिरा खाने-पीने के बाद कुंभकर्ण की बुद्धि पलट गई और धर्म की बातें भूलकर श्रीराम से युद्ध करने के लिए तैयार हो गया।

जब कुंभकर्ण युद्ध के मैदान में पहुंचा तो उसकी मुलाकात विभीषण से हो गई। विभीषण ने बताया कि किस तरह रावण ने उसे लात मारकर लंका से निकाल दिया था और श्रीराम ने उसे शरण दी है।

कुंभकर्ण ने विभीषण से कहा था कि भाई तूने तो बहुत अच्छा काम किया है, लेकिन मैंने रावण के दिए हुए मांस-मदिरा का सेवन किया है, इस कारण मुझे तो राम से युद्ध करना ही होगा। मैं सही-गलत जानता हूं, लेकिन रावण की संगत से मेरी बुद्धि पलट गई है। इसके बाद युद्ध में श्रीराम ने कुंभकर्ण का वध कर दिया।

प्रसंग की सीख

इस प्रसंग की सीख ये है कि हमें अपनी संगत को लेकर बहुत सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि गलत लोगों की संगत से हमारी बुद्धि भी दूषित हो जाती है। विचारों को अच्छा बनाए रखना चाहते हैं तो अच्छे लोगों की संगत में रहें।

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