11 मिनट पहले
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देवी दुर्गा की तीसरी शक्ति हैं चंद्रघंटा। आज (5 अक्टूबर) नवरात्रि के तीसरे दिन इनकी पूजा करें। इस स्वरूप में देवी के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इस कारण देवी का नाम चंद्रघंटा पड़ा। हमारे शरीर में सप्त (सात) चक्र हैं और इनमें अलग-अलग देवियों का वास माना जाता है। देवी चंद्रघंटा हमारे शरीर के मणिपुर चक्र में रहती हैं।
देवी चंद्रघंटा लाल-पीले चमकीले वस्त्रों में दर्शन देती हैं, इसलिए भक्तों को इनकी पूजा में लाल-पीले या नारंगी के कपड़े पहनने चाहिए। सुबह स्नान के बाद घर के मंदिर में देवी की पूजा और व्रत करने का संकल्प लें। इसके बाद देवी पूजा करें और दिनभर व्रत रखें। देवी मंत्र का जप करें। शाम को फिर से पूजा करने के बाद व्रत खोलें।
चंद्रघंटा अपने अस्त्र-शस्त्र और वाहन सिंह के साथ असुरों से युद्ध के लिए तैयार रहती हैं। देवी का ये स्वरूप संदेश देता है कि बुराइयों और परेशानियों का सामना करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए।
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व्रत में हम अन्न नहीं खाते हैं, इस कारण शरीर में एक खास प्रक्रिया होती है, जिसे ‘ऑटोफेजी’ कहते हैं। जब हमारे शरीर को पर्याप्त ऊर्जा नहीं मिलती है तब शरीर अपनी खराब कोशिकाओं को खाकर ऊर्जा जुटाता है। इस वजह से शरीर में स्वस्थ कोशिकाएं बच जाती हैं और हम पूरी तरह स्वस्थ हो जाते हैं। ये प्रक्रिया ही ऑटोफेजी है। जापानी साइंटिस्ट योशिनोरी ओशुमी ने इस प्रक्रिया के बारे में बताया था, इसलिए 2016 में इन्हें मेडिसिन का नोबेल पुरस्कार मिला था। पढ़िए पूरी खबर