The story of chess players who brought gold in 97 years bhaskar interview | चेस ओलिंपियाड में ऐतिहासिक गोल्ड दिलाने वाले प्लेयर्स का इंटरव्यू: तानिया बोलीं- अभी भारत में गोल्डन जनरेशन; विदित बोले- गलती से चेस में आया

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8 मिनट पहलेलेखक: राजकिशोर

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चेस ओलिंपियाड के 97 साल के इतिहास में भारत ने ओपन और विमेंस दोनों कैटेगरी में ऐतिहासिक गोल्ड मेडल जीता। हंगरी के बुडापेस्ट में हुए ओलिंपियाड में देश को इंडिविजुअल कैटेगरी में भी 4 गोल्ड मिले। मेंस और विमेंस दोनों कैटेगरी में 2-2 प्लेयर्स ने पहला स्थान हासिल किया।

ओलिंपियाड जीतने के बाद भारत सरकार ने चेस में गोल्ड जीतने वाले खिलाड़ियों का दिल्ली में स्वागत किया। वहां मौजूद प्लेयर्स से दैनिक भास्कर ने खास बातचीत की। अनुभवी तानिया सचदेव ने कहा कि भारत में अभी चेस की गोल्डन जनरेशन है। जानते हैं प्लेयर्स ने अपने अनुभव के बारे में क्या कहा…

1. विमेंस ग्रैंडमास्टर वंतिका अग्रवाल

सवाल- आपकी चेस में शुरुआत कैसे हुई? कब लगा कि चेस में करियर बनाना चाहिए? जवाब- मैं इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ती थी। तब वहां जीरो पीरियड होता था, इसमें स्टूडेंट्स को कोई न कोई स्पोर्ट चुनना ही होता था। मैं तब 7-8 साल की थी और मैंने चेस खेलना चुना। मेरे भाई विशेष ने भी मेरा साथ दिया। विशेष ने भी स्कूल में चेस को ही चुना।

जब मैं पहली बार स्कूल में चेस खेल कर आई तो काफी खुश थी। मैंने घर में कहा कि मैं चेस खेलना कंटीन्यू रखूंगी। बाद में मैंने चेस एकेडमी जॉइन की। मैं शुरुआत के एक साल में ही स्कूल से नेशनल और ओपन नेशनल में खेलने लग गई थी।

21 साल की वंतिका अग्रवाल ने स्कूल के समय से ही चेस के नेशनल और ओपन नेशनल में खेलना शुरू कर दिया था।

21 साल की वंतिका अग्रवाल ने स्कूल के समय से ही चेस के नेशनल और ओपन नेशनल में खेलना शुरू कर दिया था।

सवाल- USA के खिलाफ मैच में आपकी जीत से ही टीम ने मैच ड्रॉ कराया, मैच से पहले आपके मन में क्या चल रहा था? जवाब- अमेरिका के खिलाफ मैच से एक दिन पहले हमारा मैच पोलैंड से था। हम मैच हार गए थे। मैरा मैच काफी महत्वपूर्ण था, लेकिन मैं ड्रॉ ही करा पाई। अगर मैं जीतती तो हमारी टीम भी जीत जाती और गोल्ड का रास्ता ज्यादा आसान हो जाता था, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।

मैं काफी उदास थी, लेकिन तब मां मेरे साथ थी। उन्होंने कहा कि जो बीत गया, उसके बारे में मत सोचो। अब तीन मैच बचे हैं, उसमें बेहतर करो। अमेरिका के खिलाफ मैच में मैंने देखा कि बाकी टेबल पर हमारी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, इसलिए मैं रिस्क लेकर खेलने लगी। जब मेरी अपोजिट प्लेयर ने गलती की तो मैंने पॉइंट लिया और मैच जीत गई।

सवाल- जॉर्जिया की टीम में 3 ग्रैंड मास्टर थे, उनके खिलाफ क्या रणनीति अपनाई? जवाब- हमने स्ट्रैटजी बनाई थी कि हम हर बोर्ड पर हम अच्छा परफॉर्म करेंगे। जबकि जॉर्जिया की रणनीति बोर्ड-4 से ही ज्यादा पॉइंट लेने की थी। मेरी अपोनेंट ने मैच को उलझाने की कोशिश की। उसे लगा कि इससे मैं घबरा जाऊंगी, लेकिन गेम जितना मेरे लिए मुश्किल हुआ, उतना ही उसके लिए भी मुश्किल था। वह अपने ही जाल में फंस गईं और मैंने मैच जीत लिया।

सवाल- ओलिंपियाड जीतने के बाद क्या भारत में चेस भी क्रिकेट जैसी फेम हासिल कर पाएगा? जवाब- पहले भी बड़े टूर्नामेंट में मैंने मेडल तो जीते हैं। तब मुझे अपने दोस्तों को बताना पड़ता था कि मैं जीत कर आई हूं, लेकिन ओलिंपियाड में मेंस और विमेंस टीम के गोल्ड जीतने के बाद यह बताने की जरूरत नहीं पड़ी। अब पापा और मम्मी के दोस्त फोन कर उन्हें जीत की बधाई दे रहे हैं।

सवाल- आपने पढ़ाई और चेस की ट्रेनिंग को एक साथ कैसे मैनेज किया? जवाब- यह मेरे लिए आसान नहीं था। मेरी मां के बिना यह संभव नहीं हो पाता। मां टूर्नामेंट में मेरे साथ ट्रैवल करती थीं। जब मैं टूर्नामेंट खेलकर आती, तो प्लेन में ही मां किताब पढ़ कर सुनाती थीं। परीक्षा के दौरान मैं 12-12 घंटे पढ़ती थी। 10वीं और 12वीं में मेरे 90 परसेंटेज से ज्यादा मार्क्स आए। कॉलेज में भी मैंने अच्छा किया और 9 CGPA से ज्यादा स्कोर मैंटेन किया।

सवाल- आपके सफर में पैरंट्स का कितना रोल रहा? आपका फेवरेट खिलाड़ी कौन है? जवाब- पापा ने कभी चेस के लिए मना नहीं किया। स्पॉन्सर तो अभी मिले हैं, उससे पहले पापा ही पूरा खर्च उठाते थे। उन्होंने हमेशा मुझ पर भरोसा दिखाया। छोटे भाई विशेष ने भी कभी नहीं कहा कि मम्मी दीदी के साथ ही क्यों जाती हैं।

हर टूर्नामेंट में मेरे साथ मां ही जाती हैं, छोटा भाई और पापा घर पर रहते हैं। मम्मी ने अपना करियर ही मेरे लिए दांव पर लगा दिया। उन्होंने अपनी जॉब छोड़ दी और हमेशा मेरे साथ ट्रैवल करने लगीं। विश्वानाथ आनंद सर मेरे फेवरेट प्लेयर हैं। मैंने जब शुरुआत की थी, तब उन्हीं का नाम सुना था। मैं अब उनकी एकेडमी में भी हूं। वह हमेशा मुझे मोटिवेट करते हैं।

2. तानिया सचदेव

सवाल- यह आपका आठवां ओलिंपियाड था। अब जाकर गोल्ड मिला, यहां तक का सफर कैसा रहा? जवाब- हां, मेरा यह आठवां ओलिंपियाड था। 2006 से मैं ओलंपियाड में हिस्सा ले रही हूं। मैंने इस बीच काफी मेडल जीते, लेकिन टीम को ओलिंपियाड में गोल्ड नहीं जिता सकी थी। इस बार मेस-विमेंस दोनों टीमों ने एक साथ इतिहास रचा। इस मोमेंट को शब्दों में बयां नहीं कर सकती। पिछली बार चेन्नई ओलिंपियाड में हम गोल्ड के काफी नजदीक थे, लेकिन ब्रॉन्ज मेडल से संतोष करना पड़ा।

तब टीम ने पहली बार ही जीता था, लेकिन हम उसे सेलिब्रेट नहीं कर पाए, क्योंकि गोल्ड नहीं जीत पाने का अफसोस था। मुझे लगा था कि मेरा गोल्ड जीतने का सपना कभी पूरा नहीं होगा। मैं मान रही थी कि चेन्नई ओलिंपियाड मेरा आखिरी ओलंपियाड होगा। लेकिन इस बार टीम में सिलेक्शन भी हुआ और हमने गोल्ड का सपना भी पूरा किया।

सवाल- क्या बुडापेस्ट जाने से पहले आपको अपनी जीत का विश्वास था? जवाब- इस बार हमने तय कर रखा था कि गोल्ड से नीचे कुछ भी मंजूर नहीं होगा। चेन्नई में गोल्ड से चूकने के बाद सभी खिलाड़ियों को काफी बुरा लगा था। इसलिए हम सबने तय कर रखा था कि हमें अच्छा ही खेलना है। हमें गोल्ड जीतकर ही लौटना है। सभी प्लेयर ने इसके लिए काफी मेहनत भी की।

विनिंग ट्रॉफी के साथ तानिया सचदेव ।

विनिंग ट्रॉफी के साथ तानिया सचदेव ।

सवाल- आप सीनियर और अनुभवी प्लेयर थीं। टीम की युवा प्लेयर्स को देखकर आपको चेस में क्या बदलाव नजर आते हैं? जवाब- अभी भारत में चेस की गोल्डन जनरेशन है। काफी टैलेंटेड प्लेयर हैं। विमेंस में दिव्या और वंतिका ने काफी अहम मैच जीते। मुझे लगता है कि चेस का वर्तमान और फ्यूचर काफी बेहतर है। हम चेस में भी क्रिकेट की तरह डोमिनेट करने वाले हैं।

सवाल- सफर में परिवार का कितना रोल रहा? चेस को लेकर कब सीरियस हुईं? जवाब- यहां तक सफर परिवार के सहयोग के बिना संभव नहीं था। हर स्पोर्ट्स पर्सन के करियर में परिवार का जो योगदान रहता है, वह काफी अहम होता है। जब मैं यंग थी और चेस की शुरुआत की, उस समय मेरे पेरेंट्स का साथ बहुत जरूरी रहा।

चेस की शुरुआत मैंने काफी कम उम्र में कर दी थी। जब मैंने पहली बार एशियन चैंपियनशिप में गोल्ड जीता और पोडियम पर पहुंची, तब राष्ट्रगान बजते ही मुझे लगा कि यह मुझे और चाहिए। तब से मैंने लगातार इस पर ही फोकस किया। जब-जब पोडियम पर राष्ट्रगान बजने लगा, मन को अलग ही संतुष्टी मिलने लगी।

3. विदित गुजराती

सवाल- चेस की शुरुआत कैसे हुई और कब लगा कि इसी खेल में आगे बढ़ना है? जवाब- मैं चेस में आना नहीं चाहता था, मैं तो एक्सीडेंटल चेस प्लेयर हूं। मैं क्रिकेट खेलता था और क्रिकेटर बनना चाहता था। पापा मुझे क्रिकेट क्लब लेकर गए, लेकिन उन्होंने एक साल बाद आने के लिए कहा। इस बीच मैं पापा के साथ चेस खेलने लगा और जीतने लगा तब मुझे लगा कि चेस ही खेलना चाहिए।

सवाल- क्या ओलिंपियाड जीतने के बाद भारत में चेस को प्राथमिकता दी जाएगी? जवाब- गोल्ड जीतने के बाद लोगों ने हमें काफी प्यार दिया है। हमें लगता है कि चेस के प्रति लोगों का नजरिया चेंज हो जाएगा। इंडिया मेंस और विमेंस में दोनों में वर्ल्ड नंबर वन हो गया है। चेस की लोकप्रियता बढ़ेगी और आने वाले समय में भारत में क्रिकेट के बाद चेस ही दूसरा फेवरेट गेम होगा। मुझे लगता है कि चेस को ओलिंपिक में भी शामिल होना चाहिए, ताकि देश को और मेडल मिल सके।

सवाल- क्या बुडापेस्ट जाने से पहले आपको अपनी जीत का विश्वास था? जवाब- बुडापेस्ट जाने से पहले किसी ने नहीं सोचा था, लेकिन जब आगे बढ़ते चले गए, तब हमें लगा कि हम गोल्ड जीतेंगे। थोड़ा मेंटल प्रेशर भी आ गया था, लेकिन इस समय हमारी मेंटल ट्रेनिंग काम आई और हमने तय किया कि हम अपना बेस्ट ही देंगे।

4. दिव्या देशमुख

सवाल- मम्मी और पापा दोनों डॉक्टर हैं। आप चेस में कैसे आईं और कब लगा कि इसी खेल में करियर बनाना है? जवाब- पापा ने ही मुझे चेस खेलने के लिए प्रेरित किया। मैं पांच साल की थी, तब से चेस खेलना शुरू किया। पापा ही मुझे एकेडमी जाने के लिए इंस्पायर करते थे। मेरे पहले कोच राहुल जोशी सर ने मुझे रास्ता दिखाया और उन्होंने मुझे और पेरेंट्स को गाइड किया।

सवाल- आप पढ़ाई और चेस दोनों को कैसे मैनेज कर पाईं? ओलिंपियाड जीतने के बाद क्या चेस खिलाड़ियों को मान्यता मिलेगी? जवाब- पढ़ाई और चेस दोनों को साथ में मैनेज करना टफ है, लेकिन ये सब लाइफ का पार्ट है। छोटे बच्चे जब इसे देखेंगे तो उन्हें लगेगा कि चेस इंटरेस्टिंग है। नई जनरेशन ही इस खेल की पहचान बढ़ाएगी, इसलिए उनके लिए ओलिंपियाड में जीत बहुत जरूरी थी। मुझे लगता है कि आने वाले समय में यह भारत के टॉप स्पोर्ट्स में शामिल हो जाएगा।

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